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दिल्ली की 23 वर्षीय लड़की दामिनी के साथ जो कुछ घटा उसका देश में कड़ा विरोध हुआ। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुए। व्यवस्था को काबू में लाने के लिए कई जगह पर तो पुलिस को लाठी चार्ज तक करना पड़ा। लोग काफी आवेश में थे। जनता ने पुलिस और शासन व्यवस्था को जमकर कोसा। कई दिनों तक लोग पुलिस पर ये आरोप लगाते रहे कि एक प्राइवेट बस जिसमें ये सारा घटनाक्रम अंजाम ले रहा था, डेढ़ घण्टे तक शहर में सड़को पर घूमती रही और पुलिस की किसी भी PCR Van (public call report van) ने इस पर ध्यान नहीं दिया। लोगों के इन आरोपों के जवाब में दिल्ली के Police commissioner नीरज कुमार कहते हैं कि ‘‘बेशक रास्ते में कई PCR Van खड़ी थी, और थ्योरिटिकली ये सही भी लगता है कि PCR Vans को उस बस को देख लेना चाहिये था। पर Traffic में उस बस के आगे पीछे और भी वाहन चल रहे थे और उस दौरान सारे Traffic को रोक कर प्रत्येक बस की जाँच कर पाना सम्भव नहीं होता है। और चूँकि बस की सारी खिड़कियों पर काली फिल्म व परदे लगे हुए थे इसलिए बाहर से इस बात का अन्दाजा लगा पाना कि बस के भीतर क्या हो रहा है सम्भव नहीं था’’। सारे देश को इस बात का गुस्सा है कि आखिर क्यूँ पुलिस कुछ नहीं कर सकी। पर आइये जरा इस मामले को भावनाओं का चश्मा हटा कर देखते है।
सन् 2003 में आई फिल्म गंगाजल में एक किरदार था, एस पी अजय कुमार जिसकी भूमिका अजय देवगन ने निभाई थी। उस फिल्म के अन्तिम दृश्यों में से एक में नायक अजय देवगन गुस्साई भीड़ से कहते हैं कि ’’समाज को पुलिस वैसी ही मिलती है जैसा समाज खुद होता है। खाकी वर्दी के अन्दर का आदमी भी आप सभी के बीच का है’’। वह जनता जो आज बात-बात पर पुलिस को गालियाँ देते नहीं थकती को कहीं न कहीं इस बात इस बात गौर करने की जरूरत है।
पिछले दिनों दिल्ली समेत भारत के कई राज्यों में इस बात का कड़ा विरोध हुआ कि आखिर कैसे डेढ़ घण्टे तक सड़कों पर घूमते रहने के बाद भी वह बस पुलिस की नजरों से चूक गई। लोगों ने पुलिस को जमकर कोसा, गालियाँ दी और न जाने क्या-क्या किया। परन्तु इस पूरे जनाक्रोश के बीच एक बात को कहीं न कहीं सभी नजरअंदाज कर गये। और वह बात यह कि अपनी हवस पूरी करने के बाद जब आरोपियों ने उस लड़की को रक्तरंजित अवस्था में सड़क किनारे एक बस स्टाप पर मरने के लिए छोड़ दिया था, तब कई घंटों तक लोग तमाशबीन बने उसके आस पास से गुजरते रहे, पर लगातार जिंदगी की भीख माँग रही उस लड़की की ओर किसी ने भी मदद का हाथ नहीं बढ़ाया। और तब आखिरकार पुलिस की ही एक PCR Van ने जाकर अचेत सी अवस्था में पड़ी उस लड़की एवं उस लड़के को वहाँ से उठाया और दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल में भर्ती करवाया। और हम पुलिस को कोस रहे हैं।
माना कि देश की व्यवस्था बुरी है पर इसका अर्थ यह नहीं कि हम पाँचों अंगुलियों को एक सा मान कर बैठ जायें। हमारा देश विशाल है और जनता को यह समझना चाहिये कि अभी हम इतने समर्थ एंव समृद्ध नहीं हुए हैं कि सभी चीजों की आपूर्ति देश को सही अनुपात में हो सकें। ऐसे में लोगों को भी एक नागरिक होने के नाते अपनी जिम्मेदारियाँ समझनी चाहिऐ। हर काम पुलिस या प्रसाशन पर छोड़ देना बुद्धिमत्ता नहीं होगी। यह सोचने का विषय है कि यदि उस दिन पुलिस ने अपना कर्तव्य ना निभाया होता तो शायद परिणाम बेहद अलग होते। वह लड़की शायद उस दिन सड़क पर ही अपने प्राण त्याग देती यदि पुलिस ने मौके पर पहुँच कर अपनी ड्यूटी न निभायी होती। ये सारा घटनाक्रम लोगों के सामने आया और दोषी पकड़े गये। क्यूँकि पुलिस अपना काम कर रही थी। पर हम क्या कर रहे थे?
इसमें दोष लोगों का भी नहीं है। असल में हम भारतीय बेहद भावुक किस्म के होते हैं और भारत का आम आदमी भेड़चाल में चलने में यकीन रखता है। जब एक बड़े जनसमूह ने दोषियों के लिए फाँसी की माँग की तो अधिकतर लोगों ने इस बात पर बिना अपना दिमाग भिड़ाये समर्थन देना शुरू कर दिया। और एक बार जब लोगों ने यह सिलसिला शुरू किया तो फिर एक से बढ़कर एक विचार आने शुरू हुए। और इनकी सबसे ज्यादा झड़ी सोशल साइटों पर लगी । कुछ ने कहा कि दोषियों के हाथ पैर काट देने चाहिये, कुछ ने कहा कि उन पर भूखे कुत्तों को छोड़ देना चाहिऐ, कुछ ने कहा कि सरे आम उनके सर धड़ से अलग किए जाने चाहिये और भी न जाने क्या क्या। पर मैं ऐसे लोगों से पूछना चाहता हूँ कि आप कहते कि उन्होंने जो उस लड़की के साथ किया वह दरिंदगी थी। अगर वह दरिंदे थे तो आप क्या हैं? जो ऐसा सोचते हैं? मैं यह नहीं कह रहा कि दोषियों को सजा नहीं मिलनी चाहिये। मेरा कहना बस इतना सा है कि उस सजा का एक सही तरीका होना चाहिए। अगर आप बर्बरता पर बर्बरता से विजय पाना चाहते हैं तो आप इस देश को जंगल बना देंगे। जहाँ कोई नियम, कोई कानून नहीं होगा। जिसका जो जी चाहेगा सो करेगा। फिर तालिबानी राज क्या बुरा है। जनता शिकायत करती है कि फैसला आने में इतना वक्त क्यँू लग रहा है। समस्या यह है कि जिस फाँसी की जनता माँग कर रही है वह अब तक भारत के कानून में है ही नहीं। भारत के संविधान में कोई भी नया कानून बनने के लिए पहले इसे लोकसभा से फिर राज्यसभा से पास होना पड़ता है, तत्पश्चात राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के बाद यह भारत का कानून हो जाता है। हमारा सारा देश कई सारे नियम कायदे और कानूनों का पालन करते हुए चलता है, और हर वह नियम या कानून जिसका देश पालन कर रहा है को संविधान में लिखा गया है। और जो लोग यह कह रहे है कि हम दो पल के लिए कानून को ताक पर रखकर मुजरिमों को फाँसी क्यूँ नहीं दे सकते वो शायद यह नहीं जानते कि वह क्या कह रहे हैं।
जब भारत के संविधान का निर्माण हुआ तो डा0 भीमराव अम्बेडकर ने संविधान को देश के लिए सर्वोच्च बताया था। और तब से आज तक सारा भारतवर्ष सिर्फ उस एक किताब का अनुसरण कर रहा है। लोगों को यह समझना चाहिए कि भावनाएं अपनी जगह हैं पर उनके लिए सारे भारत की व्यवस्था को नहीं बिगाड़ा जा सकता। इस बात में कोई शक नहीं है पुलिस हमारी सुरक्षा के लिए है, और हमारी सुरक्षा करना उसका कर्तव्य है। यह सत्य है कि हम पुलिस से बहुत सी आशायें रखते हैं जो पूरी नहीं होती पर इस बात में भी कोई शक नहीं है कि दिल्ली पुलिस का कार्य सराहनीय है। देश में शासन व्यस्था बहाल रखने में पुलिस का बड़ा हाथ है। हम यूँ ही पुलिस को बुरा कह कर आगे नहीं बढ़ सकते। अगर पुलिस कुछ गलतियाँ करती है तो देश के करोड़ों लोगो की समस्यायें भी पुलिस ही हल करती है। जरा कल्पना कीजिए की एक रोज आप सड़क पर अपनी मँहगी गाड़ी से घूमने निकलें और सड़क पर भारी जाम लगा हो। सोचिये कि अगर ऐसे में पुलिस न हो तो क्या हालत होगी? यह गिनना आसान है कि पुलिस हमारे लिए क्या नहीं करती है। पर हम में से कितने यह सोचते हैं कि पुलिस हमारे लिए क्या करती है।
-पुनीत पाराशर, कानपुर
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