Menu
blogid : 13214 postid : 53

जमाना एडवांस का है.

Humanity Speaks
Humanity Speaks
  • 49 Posts
  • 41 Comments

cp

वक्त के तपते लोहे पर जब टेक्नोलोजी के भारी भरकम हथोड़े ने चोट की
तो औपचारिकताओं का स्वरूप ही बदल गया। कोई वक्त था जब लोग दस पन्द्रह दिन
पहले से ही नये साल की तैयारियों में जुट जाते थे। देश में जब तक दूर
संचार क्रांति ने अपने पैर नहीं पसारे थे, तब तक लोग ग्रीटिंग और उपहारों
के जरिये ही एक दूसरे को जन्म दिन और नव वर्ष आदि मौकों पर शुभकामनायें
देते थे। नवम्बर की शुरुआत से ही दुकानें ग्रीटिंग व उपहारों से सज जाती
थीं। परन्तु आज गाहे-बगाहे ही किसी दुकान पर ग्रीटिंग दिखाई देते हैं। उन
दिनों लोग उस ऐन मौके का इन्तिजार करते थे, और ठीक उसी दिन नव वर्ष की
शुभकामनाऐं और ग्रीटिंग कार्ड देते थे। परन्तु आज के दौर में ग्रीटिंग
कार्ड की जगह एस.एम.एस., ई-मेल एवं वाइस काॅल्स ने ले ली है। आज
टेक्नोलोजी से लबरेज दुनिया में लोग एडवांस होने में यकीन रखते हैं। नव
वर्ष हो या किसी का जन्म दिवस, या कोई और शुभ मौका। लोग एडवांस में
शुभकामनायें भेजना ज्यादा पसंद करते हैं। हाँ, कारण सबके लिए अलग-अलग
जरूर हो सकते हैं। स्टूडेंटस तथा आम लोग ज्यादातर त्यौहारों पर एस.एम.एस.
रेट बढ़ जाने या एस.एम.एस. कार्ड के उस रोज काम न करने के डर से ऐसा करते
हैं। वहीं समृद्ध वर्ग का मानना है कि ऐसा करने से सहूलियत रहती है तथा
सबके घर जाकर विश करने का झंझट नहीं रहता है। साथ ही साथ यह किफायती भी
है।

परन्तु ग्रीटिंग डिजाइन करने वालों का कुछ और ही मानना है। कानपुर के एक
ग्रीटिंग डिजाइनर सुरेश कटिहार का मानना है कि ’’ग्रीटिंग से विश करने का
मजा ही अलग होता था, लोगों से आमने-सामने मिल कर एक दूसरे को गले लगाकर
विश करने की बात ही और होती थी, और इसी बहाने वे लोग जिनसे काफी अरसे से
मिलना नहीं हुआ होता था, उनसे मिल भी लेते थे’’। एस.एम.एस. और ग्रीटिंग
में कौन सा बेहतर है पूछने पर सुरेश बताते है कि, ’’जब लोग एक दूसरे को
ग्रीटिंग देते थे तो वे उन ग्रीटिंगस को साल भर सम्भाल कर रखा करते थे।
मैंने खुद कई घरों में टी.वी. व फिजों पर ग्रीटिंग्स को लोगों को सजाकर
रखते देखा है’’। इस बात में कोई शक नहीं की हाथ से डिजाइन किए ग्रीटिंगों
से लोगों की भावनाऐं जुड़ी होती थी। आज लोग एक दूसरे के एस.एम.एस. पढ़ कर
कुछ ही देर में डिलीट भी कर देते हैं।

एडवांस होने का सिलसिला सिर्फ शुभकामनाओं तक ही सीमित नहीं है। अब तो
लोग हर चीज में एडवांस हो जाना चाहते हैं। कपड़ो से लेकर फैशन तक और खाने
पीने से लेकर रहन सहन तक हर चीज एडवांस होती जा रही है। हर मामले में लोग
कुछ ऐसा चाहते हैं, जैसा और किसी के पास न हो, या जिसमें वही सबसे अव्वल
हों। टीचर्स की फीस एडवांस हो गई है। काम वाली की छुट्टिया एडवांस में
फिक्स हो जाती हैं और तो और स्टूडेंटस के होस्टल का किराया तक एडवांस में
चल रहा है। बेचारा आम आदमी तो एडवांस होने के चक्कर में अपनी कमाई का एक
बड़ा हिस्सा खर्च कर देता है। परन्तु एडवांस होने की इस होड़ में कहीं हम
रिश्तों के साथ समझौता तो नहीं कर रहे यह सोचने का विषय है।

पुनीत पाराशर, कानपुर(JIMMC) puneet.manav@gmail.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply