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आज दिनांक 5/01/2013 को मैंने एक समाचार चैनल के माध्यम से एक विचारक हृदय नारायण दीक्षित का एक इन्टरव्यू देखा। उनके लेख मैंने उनके लेखों को तमाम समाचार पत्रों में पढ़े हैं, और यह महसूस किया है कि वह एक श्रेष्ठ लेखक हैं। पत्रकार द्वारा पूछे गये प्रश्नों व हृदय नारायण दीक्षित के उत्तरों को सुनकर मुझे यह लगा कि श्री हृदय नारायण दीक्षित बेहद अन्तर्मुखी स्वभाव के व्यक्ति हैं। मुझे यह लगा कि इण्टरव्यू के दौरान हृदय नारायण दीक्षित अपने अंतरमुखी स्वभाव के कारण ही वह पत्रकार द्वारा पूछे गये प्रश्नों का संतुष्टिजनक उत्तर नहीं दे पा रहे थे, और न हीं अपने ज्वलंत विचारों को सही रूप से प्रस्तुत कर पा रहे थे। जिसका कि मुझे बेहद कष्ट हुआ। राष्ट्रीय स्वंसेवक संघ के सर संघ चालक मोहन भागवत के विचार कि ‘‘बलात्कार जैसी घटनाऐं इंडिया में होती हैं भारत में नहीं’’ को हृदय नारायण दीक्षित के अलावा भी तमाम लोगों ने अपने अल्पज्ञान के चलते आलोचना तो की परन्तु समालोचना करता कोई भी नज़र नहीं आया। मोहन भागवत जी के विचारों को यदि सही रूप में लिया जाए तो मैं रविशंकर प्रसाद एंव हृदय नारायण दीक्षित के विचारों से कुछ हद तक सहमत हूँ। किसी भी शब्द अथवा वाक्य का अर्थ निकालने के लिए तीन शक्तिया काम करती हैं 1.अविधा 2.विज्ञार्थ एवं 3.लक्षणा। जिन पर विचार नहीं किया गया। इसीलिए समाचार चैनलों की मीमांसा और हिंदी के विद्वानों की कमी की अनुपस्थिति के कारण मुझे एसा नहीं लगा कि भारत के सामने सही तथ्य तथा तस्वीर प्रस्तुत की जा रही है।
मोहन भागवत के विचार भारत की आर्य सभ्यता को लेकर थे। नैतिक मूल्यों शिष्टाचार और पंचशील के सिद्धान्तों को लेकर थे। 15 अगस्त 1947 को जब भारत देश आजाद हुआ तो देश की आजादी के क्रंातिकारी नेता सुभाष चन्द्र बोस को देश का प्रधानमंत्री होना चाहिये था। लेकिन आॅक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले मोती लाल नेहरू के पुत्र जवाहर लाल नेहरू को देश का प्रधानमंत्री बना दिया गया। वास्तविकता यह थी कि पश्चिमी सभ्यता में पढ़े व पले जवाहरलाल नेहरू ने देश को भारत से इंडिया बनाने की शुरूआत कई दशक पहले ही कर दी थी।
puneet.manav@gmail.com
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