Menu
blogid : 13214 postid : 71

विचार

Humanity Speaks
Humanity Speaks
  • 49 Posts
  • 41 Comments

66411_fullsize
इंसान का दिमाग प्रकृति की बनाई कुछ सबसे अनूठी चीजों में से एक है। यह 24 घंटे विचारों से भरा रहता है। विचारों का न तो कोई आकार होता है और न ही यह जगह घेरते हैं। यह एक ऐसी चीज है जो आइजैक न्यूटन के बनाए भौतिकी के नियमों का पालन नहीं करती। इसलिए इसे खाली कर पाना इतना आसान नहीं है।
हमारा दिमाग हर वक्त विचारों से भरा रहता है, यहाँ तक कि उस वक्त भी जब हम सो रहे होते हैं। आपका दिमाग हर वक्त कुछ न कुछ सोच रहा है। ठीक अभी इस लेख को पढ़ते वक्त भी। पुरुषों में 1350 और स्त्रियों में 1450 ग्राम वजन का यह छोटा सा बक्सा आठों पहर विचारों से लबालब भरा हुआ रहता है।
वैसे एक तरकीब है इसे खाली करने की, जिसे आज से हजारों वर्ष पूर्व हमारे ऋषियों ने खोज लिया था। इस क्रिया को हिंदी में ध्यान और अंग्रेजी में मेडिटेशन कहते हैं। मैंने स्यंव तो कभी महसूस नहीं किया पर पढ़ा काफी कुछ है इसके बारे में। ध्यान एक ऐसी मानसिक क्रिया है जिसे नियमित रूप से करने से अपने दिमाग को विचार शून्य कर पाना संभव है। विचार शून्यता एक अद्भुद अनुभूति है। जन्म से लेकर मृत्यु तक आप हर पल कुछ न कुछ सोच रहे हैं। आपका शरीर यदि थक भी जाये तो आप उसे आराम दे सकते हैं पर दिमाग के लिए कोई आराम नहीं है। दुनियाँ भर का तनाव और सरदर्द भरा हुआ है दिमाग में विचारों के रूप में। ऐसे में कुछ देर के लिए विचार शून्य होने की कल्पना मात्र से अच्छा महसूस होने लगता है। तो अगर वाकई दिमाग कुछ देर के लिए विचारों के घोड़े दौड़ाना बन्द कर दे तो कैसा लगेगा? कल्पना करके ही अच्छा लगता है ना?
‘‘खाली दिमाग शैतान का घर’’। क्या लगता है आपको यह कहावत क्यों अस्तित्व में आई होगी? जबकि जिस खाली दिमाग के शैतान का घर हो जाने की हम बात कर रहे हैं वह तो असल में खाली होता ही नहीं। हम एक ऐसे समाज में जीते हैं जहाँ हमें जन्म से ही सिखाया जाता है कि क्या सही है और क्या गलत। मसलन बचपन में मिट्टी खाना गलत है। बाल्यावस्था में शरारतें करना गलत है। किशोरावस्था में हस्तमैथुन करना गलत है। युवाअवस्था में किशोरियों को कामुक दृष्टि से देखना गलत है। यह सब कुछ सामाजिक पैमाने पर निर्धारित होता है, कि समाज किस चीज को जगह देता है और किस चीज को नहीं। अतः प्रत्येक मनुष्य के मन में ऐसी कुछ इच्छायें होती है जिन्हें हम पूरा तो करना चाहते हैं परन्तु यह इच्छायें सामाजिक कसौटी पर खरी नहीं उतरतीं, या फिर यँू कहें कि इन इच्छाओं को सामाजिक तौर पर सही नहीं माना जा सकता। ऐसे में हम अपनी इन इच्छाओं को सामाजिक और पारिवारिक डर की वजह से अपने भीतर दबाये रहते हैं। इंसान के भीतर की इन सहज किन्तु असामाजिक इच्छाओं को हम भीतर छिपा शैतान कहते हैं। जब भी कोई व्यक्ति सामाजिक नियमों से स्वतंत्र महसूस करता है तो उसके भीतर की यह सहज इच्छायें बाहर आने के लिए हिलोरें मारने लगती हैं।
जाहिर है कि बलात्कार, हत्या, लूटपाट एंव यौन शोषण भी इन्हीं विकृत इच्छाओं में के नतीजे हैं। यह घटनायें भी ऐसे लोगों के द्वारा ही की जाती हैं जो सामाजिक तौर पर हद से ज्यादा खुले छोड़ दिये गये हैं या जिन्हें समाज या परिवार का डर नहीं है। अतः मैं इन सहज इच्छाओं को कदापि सही नहीं ठहरा रहा हूँ। बल्कि इंसान और जानवर के बीच का मूलभूत फर्क ही यही है कि इंसान ने अपनी इन पाशविक इच्छाओं पर नियंत्रण करना या यँू कहें कि उन्हें सही समय और सही जगह पर फोकस करना सीख लिया है। पश्चिमी सभ्यता में ऐसी तस्वीरों का काफी चलन है जिसमें किसी इंसान के दाँये कंधे पर देवदूत को एंव बाँये कंधे पर त्रिशूल लिए एक शैतान को बैठा हुआ दर्शाया जाता है। इस तस्वीर का बेहद सीधा और साफ सा अर्थ यह है कि शैतान और भगवान दोनों आप ही के भीतर हैं, आपको सिर्फ यह फैसला करना है कि आप किसका साथ देना चाहते हैं।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply