Menu
blogid : 13214 postid : 811851

नेताजी तोल मोल कर बोलिए

Humanity Speaks
Humanity Speaks
  • 49 Posts
  • 41 Comments

जीतन राम मांझी

यह सच है कि एक राजनेता को कई बार झूठे आश्वासन देने पड़ते हैं और बढ़ा-चढ़ा कर बातें करनी पड़ती हैं। लेकिन एक लोकतांत्रिक देश में राजनेता की वास्तविक ताकत जनता ही होती है। कौन नेता कितना कद्दावर है यह इसी बात पर निर्भर करता है कि उसके साथ कितने समर्थक जुड़े हुए हैं। यदि जनता उसके पक्ष में न हो तो एक राजनेता कि शक्तियाँ क्षीण सी हो जाती हैं और सत्ता भी उसके हाथ से जाती रहती है। एक नेता को सत्ता में आने के लिए लोगों का विश्वास जीतना होता है और उन्हें यह यकीन दिलाना होता है कि वही जनता के सच्चे हितैशी है। इसीलिए नेता अपने भाषणों में आमतौर पर या तो लोगों को यह बताते हैं कि अन्य नेताओं ने जनता के साथ किस प्रकार भेदभाव अथवा दुर्व्यवहार किए अथवा वह लोगों को यह बताते हैं कि उन्होंने स्वयं जनता के भले के लिए क्या-क्या काम किए हैं। यह एक तहर से स्वंय का मौखिक विज्ञापन करना ही है। और इस तरह के विज्ञापन के लिए राजनीतिक रैलियों से अच्छी कोई जगह नहीं होती। हाँ, इतना ज़रूर है कि यह विज्ञापन आम विज्ञापनों से थोड़ा इतर हैं। इसे अपने मुँह से अपनी तारीफ़ों के कसीदे पढ़ना कह सकते हैं। इसीलिए ज्यादातर रैलियों में नेता अपनी तथा अपनी पार्टियों का जम कर गुणगान करते हैं और लोगों को यह बताते हैं कि वह उनके लिए कितना काम कर रहे हैं। यह सारी जद्दोजहत सिर्फ इसलिए होती है कि लोग अमुख नेता के समर्थन में आकर उसे वोट दें।

अपने मुँह से अपनी तारीफ़ें करने को राजनीति में गलत नहीं माना जा सकता क्योंकि यह विषय ही ऐसा है। यदि नेता ऐसा नहीं करेगा तो उसके पास और कोई सीधा तरीका नहीं रह जाता यह बताने का कि वह दूसरे नेताओं से बेहतर कैसे है? हालांकि राजनैतिक विज्ञापन कुछ हद तक प्रभावशाली होते हैं किन्तु वह भी सिर्फ तभी कारगर होते हैं जब नेता स्वयं एक अच्छे नेतृत्वकर्ता की तरह लोगों के बीच जाकर सीधे तौर पर उनसे रूबरू हो और उन्हें अपनी बातों से बांध ले। किन्तु यह काम इतनी सफाई से किया जाना चाहिए कि नेता का भाषण सुनते वक्त जनता को यह अहसास न होने पाये कि नेताजी अप्रत्यक्ष रूप से अपनी ही तारीफ़ें कर रहे हैं। यह तरीका सीधे तौर पर अपना गुणगान करने से ज्यादा बेहतर साबित होता है। यह साफ तौर पर यह विचारों को व्यक्त करने की एक कला है। जो नेता अपने विचारों को जनता के सामने इस ढ़ग से पेश कर पाते हैं कि जनता को यह भी न मालूम चले कि नेताजी अपनी तारीफें कर रहे थे और नेताजी अपना उल्लू भी सीधा कर लें। उनकी बातें जनता मंत्र मुग्ध होकर सुनती भी है और बाद में उनकी भोरि-भोरि प्रशंसा भी करती है। पश्चिमी देशों में राजनीतिज्ञ लॉजिकल अप्रोच का इस्तेमाल करते हैं। इसका कारण वहाँ की जनता की तार्किक और सीधे तौर पर चीज़ों को समझने की मानसिकता है। किन्तु भारत में राजनेता भाषण देते वक्त इमोशनल अप्रोच का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। भारत के लोग सीधे तौर पर बात कहे जाने को ठीक नहीं मानते। किन्तु वही बात यदि थोड़ा घुमा फिराकर चिकने चुपड़े अंदाज़ में पेश की जाए तो उसमें खुश हो जाते हैं। भिन्न भिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में अलग अलग तरह की मानसिकता से सोचने वाले लोगों के सामने यदि सही अप्रोच के साथ अपनी बातों को रखा जाये तो बात बन जाती है।

लेकिन बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी इन सारी बातों को नज़रंदाज़ कर गए। और उन्होंने बयानबाज़ी में स्वयं को सीधे तौर पर प्रधानमंत्री पद के लिए काबिल व्यक्ति कह डाला। इसकी वजह उनकी राजनैतिक नासमझी रही अथवा कुछ और, यह कहना मुश्किल है। किन्तु यह साफ तौर पर देखा गया कि इस बयान से उन्हें मीडिया में बहुत ज्यादा जगह नहीं मिली। उल्टे वह अपना मज़ाक बनवा बैठे। इसी बात को यदि उन्होंने किसी मंझे हुए राजनेता की तरह घुमा फिरा कर कहा होता तो इससे वह अपनी बात भी कह पाते और उन्हें अपने मुंह मिया मिठ्ठू भी न बनना पड़ता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मामले में बहुत ही कुशल और समझदारी पूर्ण तरीके से अपनी बात कहने के लिए जाने जाते हैं। वह अपनी बात को इस लिहाज़ से कहते हैं कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। नरेंद्र मोदी की भारी भरकम फैन फॉलाओइंग के पीछे शायद उनका भाषण कुशल और एक बेहतरीन वक्ता होना भी एक वजह है।

By: पुनीत पाराशर

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply