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क्या सिर्फ योग दिवस काफी है?

Humanity Speaks
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रस्ताव के मात्र 3 माह के भीतर ही संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के तौर पर मनाने की मंज़ूरी दे दी है। इस प्रस्ताव पर विश्व के 177 देशों ने समर्थन किया है। निश्चित तौर पर इससे भारत की साख को विश्व स्तर पर मजबूती मिलेगी। किन्तु वर्तमान समय में भारत जिन परिस्थितियों से गुज़र रहा है, उनसे ऐसा लगता है कि भारत में योग दिवस के अलावा स्वच्छ भारत दिवस, राष्ट्रीय एकता दिवस, जातीय समरसता दिवस, पर्यावरण रक्षा दिवस, ऊर्जा संक्षण दिवस और सौर ऊर्जा दिवस जैसे कुछ अन्य दिवसों की घोषणा कर उनके बारे में भी जागरुकता फैलाने की जरूरत है। क्योंकि यह कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर भारत पिछले कई वर्षों में घोंघे की चाल से आगे बढ़ा है। साक्षी महाराज जैसे संसद सदस्य लोकसभा के मन्दिर के बाहर खड़े होकर इस बात को बड़ी आसानी से कह देते हैं कि “अयोध्या में राम मन्दिर को बनने के कोई नहीं रोक सकता”। भारत में शिक्षित लोगों की तादात पहले से कहीं ज्यादा है। किन्तु फिर भी ऐसा क्या कारण है कि वही मुद्दे घूम फिर कर संसद में उठाये जाते रहे हैं, जिन्हें आज से कई साल पहले भी उठाया जा रहा था।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है कि “मैं कण-कण में व्याप्त हूँ”। यदि हिन्दुओं के इष्ट देव स्वयं इस बात को कहते हैं तो फिर हिन्दुओं के इस मुद्दे को लेकर खींचातान करने की वजह नहीं समझ आती। भारत एक ऐसा देश है जहाँ आपको अस्पताल और धर्मशालाएं तलाशने के लिए चाहे भटकना पड़ जाए किन्तु हर कुछ कदम पर आपको मन्दिर और दरगाह ज़रूर मिल जाएंगी। निश्चित ही आस्था का अपना महत्व है और यह व्यक्ति के मन को आन्तरिक शान्ति देता है। किन्तु जब भारत में इतनी बड़ी तादात में मन्दिर और मस्जिद पहले से ही मौजूद हैं तो ऐसे में इस बात को लेकर झगड़ने का औचित्य नहीं समझ आता कि किसी विशिष्ट स्थान पर पहले राम मन्दिर था अथवा बाबरी मस्जिद। 6 दिसम्बर 1992 से लेकर आज तक इस मुद्दे पर बहस चलती आ रही है। किन्तु कोई स्थाई समाधान नहीं निकाला जा सका है। बल्कि भाजपा के सत्ता में आने के बाद से यह मुद्दा एक बार फिर से तूल पकड़ने लगा है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जिस स्थान को लेकर यह सारी रस्साकस्शी हो रही है उसका अपना ऐतिहासिक महत्व है। किन्तु बुद्धिजीवियों को इस बात का एहसास होना चाहिए कि उनके प्रयासों से यदि भूख से बिलबिलाते पेटों में खाने का एक निवाला चला जायेगा तो इससे उन्हें इतना आशीर्वाद मिल जाएगा जिसके बाद शायद भगवान के आशीर्वाद की ज़रूरत न रह जाए।

By: पुनीत पाराशर

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