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फ़्रैशर हो.?

Humanity Speaks
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यह एक ऐसा सवाल है जो एक छात्र के ज़िंदगी में कई बार आता है। डिग्री कॉलेज में एडमिशन के बाद होने वाली रैगिंग से सभी वाकिफ़ हैं। स्टूडेंट्स जब 12वीं पास करके ग्रैजुएशन के लिए कॉलेज में एडमिशन लेते हैं तो ज्यादातर स्टूडेंट्स के दिल में रैगिंग का ख़ौफ घर किए रहता है। रैगिंग रोकने के लिए एन्टी रैगिंग एक्ट सरकार द्वारा पहले ही तैयार किया जा चुका है जिसके तहत ऐसा करने वाले को 2 साल की सज़ा और 10 हज़ार रुपये का जुर्माना हो सकता है। लेकिन हकीकत यह है रैगिंग को आज भी पूरी तरह से रोका नहीं जा सका है। कॉलेज का नया सत्र शुरू होते ही सीनियर स्टूडेंट्स कैंपस में नये चेहरों की तलाश करने लगते हैं। और जैसे ही कोई नया स्टूडैंट कॉलेज में दिखाई दिया सीनियर बड़े रौबदार अंदाज़ में उस पर पहला सवाल यही दागते हैं कि “फ्रैशर हो.?” और आपका जवाब हाँ में आते ही कई उलझे हुए सवालों की झड़ी सी लग जाती है। कई बार तो इन स्टूडेंट्स से ऐसे काम करने को कहा जाता है जिनसे उन्हें बेहद ग्लानि होती है। यही वजह है कि रैगिंग की वजह से कई छात्र आत्महत्या जैसा ग़लत कदम भी उठा लेते हैं।

एक फ्रैशर की जिंदगी में समस्याओं का अंबार होता है। कभी-कभी तो लगता है जैसे फ्रैशर होना गुनाह हो। पढ़ाई पूरी होने के बाद नौकरी की तलाश में निकलिए तो हर संस्था में इस सवाल से आपका सामना होगा। “फ्रैशर हो.?” आपका जवाब “नहीं” में आते ही आपको नौकरी मिलने की संभावनाएं कई प्रतिशत कम हो जाती हैं। सभी कम्पनियाँ और निजी संस्थाए अनुभव को प्राथमिकता देती हैं। यदि आपके पास किसी कम्पनी में उसी काम को करने का कुछ वर्षों का अनुभव है, जिस काम के लिए आपने आवेदन किया है। तो आपको नौकरी मिलने की संभावनाएं अधिक होती हैं। पूरी लगन के साथ पढ़ाई करने और काम करने इच्छा से ओत-प्रोत एक स्टूडेंट को अपनी मनचाही नौकरी के लिए कई बार दर-दर भटकना पड़ता है। उसके जेहन में कई सवाल उठते हैं जो कई बार तनाव की वजह बन जाते हैं।

कम्पनियों का अनुभव को प्राथमिकता दिया जाना भी हालाँकि तर्कसंगत है। लेकिन सोचने वाली बात यह है कि यदि आप किसी फ्रेशर को मौका ही नहीं देंगे तो अनुभव पैदा कैसे होगा? सभी नौकरीपेशा व्यक्ति उस खुशी से अच्छी तरह वाकिफ़ होते हैं जो पहली नौकरी का अपॉइंटमेंट लैटर हाथ में आने पर होती है। पहली बार अपनी मेहनत की कमाई हाथ में आने पर चेहरे पर जो खुशी होती है उसकी तुलना किसी और अनुभूति से नहीं की जा सकती। कई सारे खयाल जुड़े होते हैं अपनी पहली पगार को लेकर। अपनी पहली कमाई से माँ को साड़ी देना, पापा के लिए घड़ी खरीदना, और भाई के लिए शर्ट खरीदने की खुशी अतुलनीय होती है। यह सारे ख़्वाब उस स्टूडेंट के दिल में भी होते हैं जो अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपनी डिग्री और रिज्यूमे साथ लिए नौकरी की तलाश में हफ्तों और कई बार तो महीनों घूमता है। लेकिन बीच में आ जाता है कमबख्त फ्रैशर होना। इन्टरव्यू के दौरान जब आप एच.आर. को यह बताते हैं कि आप फ्रैशर हैं; तो उसके चेहरे के भाव ही बदल जाते हैं। एक दो कम्पनियों में इन्टरव्यू देने के बाद तो इस सवाल की आदत सी हो जाती है। आप एच.आर. के कमरे में दाखिल होने के पहले ही मन बना चुके होते हैं कि यह सवाल तो पूछा ही जाएगा। इन्टरव्यू रूम से बाहर आता हर एक शख्स अपने हाव-भावों से आपकी धड़कनें और बढ़ा देता है। नौकरी पाने के लिए आपके अन्दर सारी खूबियाँ होने के बावज़ूद आपके हाथ पाँव कांपने लगते हैं।
हाल फिलहाल इंटर्नशिप इस समस्या का एक अधूरा समाधान है। अधूरा इसलिए क्योंकि छात्र से इंटर्नशिप के दौरान बेहिसाब काम कराया जाता है और इसके बदले में उसे कोई धनराशि नहीं दी जाती। हालांकि कुछ कंपनियाँ पेड ट्रेनिंग की सुविधा मुहैया कराती हैं, लेकिन यह सिर्फ उसी स्थिति में होता है जब कंपनी में आपकी जॉब लगभग तय हो। जो छात्र अपनी पढ़ाई पूरी कर चुके हैं और नौकरी की तलाश में हैं उन्हें चाहिए कि धैर्य रखें और अपने लक्ष्य को पाने के लिए अनवरत प्रयास करते रहें। ऐसा कुछ भी नहीं है जो आपको आपके सपने तक पहुँचने से रोक सकता है। ज़रूरत है तो बस तीव्र इच्छा शक्ति की।

By: पुनीत पाराशर

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