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मजदूरी तो मजबूरी है

Humanity Speaks
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मजदूरी

नासा के मुताबिक चीन की दीवार इकलौती ऐसी मानव निर्मित संरचना है जो कि अंतरिक्ष से भी दिखाई पड़ती है। लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि चीन की दीवार बनाते वक्त मजदूरों पर घोर अत्याचार किए गए थे। मजदूरों को कोड़े मार-मार कर उनसे काम करवाया जाता था। जुल्म का आलम यह होता था कि कई मज़दूरों की काम के दौरान ही मौत हो जाती थी। लेकिन इसके बाद जो होता था वह इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला है। मजदूरों की मौत हो जाने के बाद उन्हें दीवार में ही चुनवा दिया जाता था। जिससे उसके क्रियाकर्म में समय नष्ट न हो और काम को अनवरत जारी रखा जा सके।

आज चीन की दीवार और उसकी महानता के बारे में तो सभी जानते हैं लेकिन उन मजदूरों के बारे में कोई नहीं जानता जिन्होंने इसे बनाया। राजा महाराजाओं के जमाने से आज तक लगभग सभी कुछ बदलता रहा है। नहीं बदली है तो मजदूरों की स्थिति। वह तब भी गरीब और अशिक्षित होते थे। वह आज भी गरीब और अशिक्षित होते हैं। उन्हें उस वक्त भी बहुत सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता था। उन्हें आज भी बहुत सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता। असल में एक व्यक्ति मज़दूरी करता ही उस स्थिति में है, जब उसके पास कोई और चारा नहीं बचता। तब वह मजबूरी में मजदूरी का विकल्प चुनता है।

यह एक ऐसा काम है जिसमें कोई डिग्री या डिप्लोमा नहीं चाहिए। कोई योग्यता नहीं चाहिए। बस एक मजबूर इंसान चाहिए जिसके पास कमाई का कोई और ज़रिया न बचा हो। हाड़ माँस का शरीर सही सलामत हो और वह दो वक्त की रोटी के लिए काम करने को तैयार हो। मजदूर चाहे भारत का हो अथवा किसी और देश का। सभी जगह के मजदूरों की हालत लगभग एक सी होती है। एक दुबली पतली सी काया वाला व्यक्ति जो पसीने से तर-बतर बड़ी मेहनत से अपने काम में लगा होता है। और अंत में उसे एक छोटी सी धनराशि दे दी जाती है जिससे किसी तरह वह खुद का और अपने परिवार का पालन पोषण करता है।

रात के वक्त कृत्रिम रोशनी में सराबोर आलीशान मॉल हों, लम्बे चौड़े हाई-वे हों, गगनचुम्बी इमारतें हों अथवा शानदार स्टेडियम। इनके निर्माण में मजदूरों की कड़ी मेहनत होती है। तपती धूप हो या कड़कड़ाती सर्दी, मजदूर हर हालत में अपना काम करता है। या यूँ कहें कि उसके पास और कोई चारा नहीं होता। मजदूरों और इन्जीनियरों की कड़ी तपस्या के बाद कहीं जाकर ये इमारतें तैयार होती हैं। इन्हें तैयार करने वाले इन्जीनियर, आर्किटेक्ट और पैसा पास कराने वाले नेताओं की तो खूब तारीफें होती हैं। लेकिन जिसे सब भूल जाते हैं, वह है बेचारा मजदूर। जैसे-जैसे विज्ञान अपने पैर पसार रहा है, मजदूरों की जगह मशीनों ने लेना शुरू कर दिया है। बहुत संभव है कि भविष्य में मशीनें मजदूरों के काम को पूरी तरह अपने हिस्से में ले लें। वर्तमान में टाटा मोटर्स एक ऐसी ऑटोमोबाइल कंपनी है जिसने खुद को पूरी तरह से कंप्यूटराइज्ड कर लिया है। रोबोटिक आर्म्स उस सारे काम को इंसान की तुलना में कहीं तेज़ी से करती हैं, जिसे करने में कर्मचारियों के दल को कई दिन लगते थे। टाटा मोटर्स की प्रोडक्शन फर्मों में अब कर्मचारियों की ज़रूरत सिर्फ इन मशीनों की देखरेख के लिए होती है। शायद ऐसा ही प्रयोग धीरे धीरे बाकी कंपनियाँ भी करें। वर्तमान में मजदूरों की हालत बहुत अच्छी नहीं है। और जिस तरह मशीनें इंसान की जगह लेने लगी हैं मजदूरों का भविष्य विलुप्तप्राय मालूम देता है। लेकिन वर्तमान में तो कुछ काम आज भी ऐसे हैं जिन्हें बिना मज़दूरों की मदद के नहीं किया जा सकता। एक मध्यम वर्ग का व्यक्ति जब अपने सपनों का आशियाना तैयार कराता है तो वह मंहगी मशीनों का खर्च नहीं उठा सकता। ऐसे में मजदूर ही उसका काम करते हैं। लेकिन यहाँ भी बेचारा मजदूर ही मात खाता है। मोल भाव कर मजदूर की मजदूरी (मजदूर को मिलने वाली रकम) कम से कम करने की पूरी कोशिश की जाती है। गाँव के एक बुजुर्ग मजदूर से बात करने पर वह बताते हैं कि, “सब कुछ मंहगा होता जा रहा वक्त के साथ, सस्ती है तो बस मजदूर की मजदूरी”।
राजनेताओं ने भी मजदूरों और उनके मर्म को कभी बहुत गंभीरता से नहीं समझा। ज्यादातर राजनेताओं ने मजदूरों को एक आसान वोट बैंक से ज्यादा कुछ नहीं समझा है। अर्थव्यवस्था में भागीदार एक ऐसा तबका जिसको बस थोड़ा सा प्रलोभन देकर उससे वोट लिया जा सकता है। और एक बार जो कुर्सी नीचे आ गयी तो फिर घोषणा पत्र में किए गए सारे वादे धरे रह जाते हैं। भारतीय मजदूर संघ भारत का सबसे बड़ा मजदूर संगठन है। इस संगठन से भारत में सर्वाधिक मजदूर जुड़े हुए हैं। यह मजदूरों द्वारा संचालित, मजदूरों के लिए, मजदूरों का संगठन है। जिसकी स्थापना 23 जुलाई 1933 को दत्तोपन्त ठेगड़ी ने लोकमान्य तिलक के जन्मदिवस पर की थी। इसके अलावा भारत में राष्ट्रीय और राज्यीय तौर पर श्रम मंत्रालय हैं। जिन्हें मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया है। श्रम एंव रोजगार गारण्टी कानून जैसे कई कानून बन चुके हैं। और तो और 1 मई को सम्पूर्ण विश्व में मजदूर दिवस मनाया जाता है। लेकिन इस सब के बावजूद मजदूरों की स्थिति देश में कैसी है वह किसी से छिपा नहीं है।

भारत सरकार ने श्रम एंव रोजगार मंत्रालय के लिए बाकायदा एक वेब साइट डिज़ाइन कर रखी है। जिसको देखते ही पहला खयाल आपके दिमाग में यही आयेगा कि झुग्गी झोपड़ियों में रह कर किसी तरह अपनी जिन्दगी काट रहे कितने गरीब इस वेबसाइट को खोल कर देखते होंगे। वेब साइट पर साफ शब्दों में लिखा है कि “श्रम एवं रोजगार मंत्रालय भारत सरकार के सबसे पुराने और महत्वपूर्ण मंत्रालयों में से एक है”। लेकिन यदि वाकई भारत सरकार के लिए यह मंत्रालय इतना महत्वपूर्ण है, तो भारत में आज भी 36 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे क्यों जीवन यापन कर रहे हैं? भारत सरकार के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में 32 रुपये प्रति दिन और शहरों में 47 रुपये प्रतिदिन कमाने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है।

भारत सरकार की ओर से बीपीएल यानि गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों के लिए अलग राशन कार्ड की सुविधा है। इन लोगों को सरकार बेहद कम दाम पर राशन मुहैया कराती है। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि वे लोग जिन्हें वाकई बीपीएल कार्ड की ज़रूरत है उनमें से अधिकतर को बीपीएल कार्ड के बारे में मालूम तक नहीं होता है। भारत में गरीब और अशिक्षित होना किसी अभिशाप से कम नहीं। इसका जीता जागता उदाहरण अभी हाल ही में आगरा में सामने आ गया जब कुछ गरीबों को बीपीएल कार्ड बनवाने का झांसा देकर उनका धर्मांतरण करा लिया गया। हालाँकि बात में यह मुद्दा इतना अधिक तूल पकड़ गया कि इस पर संसद में कई दिनों तक बहस हुई। सांसदों में भारी तू-तू मैं-मैं हुई और कई बार संसद की कार्यवाही को स्थगित तक करना पड़ा। किन्तु इन लोगों की हालत को सुधारने के लिए कोई पुख्ता कदम नहीं उठाये गये।
हालांकि इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि कई सरकारें मजदूरों के लिए अच्छा काम कर रही हैं। किन्तु विचारणीय पहलू यह है कि उन्हें पैसे अथवा संसाधनों की मदद उपलब्ध करा कर हम उनकी कितनी सहायता कर पायेंगे। मजदूरी एक विकल्प नहीं एक मजबूरी है। जिसे व्यक्ति तब चुनता है जब उसके पास कोई अन्य रास्ता नहीं बचता। ऐसे में अच्छी शिक्षा ही एक ऐसा उपचार है जो गरीबी और बेरोजगारी के रोग पर संजीवनी का काम कर सकती है। जो इस बात की गारण्टी है कि इन गरीबों और मजदूरों के परिवार आगे भविष्य में इस पेशे को नहीं अपनायेंगे, और एक उज्जवल भविष्य की ओर उन्मुख होंगे।

By: पुनीत पाराशर

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