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कश्मीर पर कलह जारी है

Humanity Speaks
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जब भारत-पाक विभाजन हुआ तो गांधी जी ने मुसलमानों के सामने दो विकल्प रखे। पहला विकल्प यह था कि जो मुसलमान भारत में रहना चाहते थे वह भारत में रह सकते थे और दूसरा यह कि जो मुसलमान पाकिस्तान जाना चाहते थे उन्हें पाकिस्तान में जाकर रहने की अनुमति थी। नतीजतन भारत में हिन्दू मुस्लिम दोनों धर्म के लोग समान भाव से रहने लगे। लेकिन जिन मुस्लिमों ने भारत में रहने का फैसला लिया था अब वह यहाँ अल्पसंख्यक हो गए। हिन्दू मुस्लिमों में कभी धर्म को लेकर तो कभी देश को लेकर विचारों की खींचतान चलती रही लेकिन इसके बावजूद भारत में ऐसे मुसलमानों की कोई कमी नहीं रही जो भारत को अपना ही देश मानते हैं और इस देश के लिए उतने ही समर्पित हैं जितना कि किसी अन्य धर्म के लोग।
यह बात सत्य है कि देश प्रेम का किसी जाति अथवा धर्म से कोई लेना देना नहीं है। यह आत्मा से उत्पन्न होने वाली पुकार है। यह कोई संयोग नहीं है कि हिन्दुस्तान कहलाए जाने वाले इस देश की कई जानी मानी इमारतें मसलन ताजमहल, कुतुबमीनार, लाल किला आदि मुस्लिमों के ही बनवाए हुए प्राचीन किले व गुम्बद हैं। इस देश पर मुस्लिमों का भी उतना ही अधिकार है जितना कि किसी अन्य धर्म के लोगों का। उन्होंने भी आज़ादी की जंग में उतना ही खून बहाया है जितना कि अन्य लोगों ने। इसीलिए कुछ लोगों का यह कहना कि मुसलमानों को जब अपना देश दे दिया गया है तो उन्हें भारत में रहने की क्या ज़रूरत? पूरी तरह निराधार है।
देश को समस्या असल में उस तरह के लोगों से है जो जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करने की मंशा रखते हैं। मसर्रत आलम और सैयद अली शाह गिलानी इसी तरह के लोगों में से हैं। पीडीपी सरकार ने मसर्रत आलम को किस बिनाह पर रिहा किया यह कहना ज़रा मुश्किल इसलिए है क्योंकि मुफ्ती मुहम्मद सईद इस सवाल पर पहले भी यह दलील दे चुके हैं कि मसर्रत की रिहाई कोर्ट के आदेश पर हुई थी न कि उनकी शिफारिश पर। मामला जो भी हो पर हाल फिलहाल अलगाववादी नेता मसर्रत आलम और हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता सैयद अली शाह गिलानी कश्मीर सरकार के गले की फाँस बने हुए हैं। पीडीपी और भाजपा के गठबंधन से चल रही जम्मू-कश्मीर सरकार मसर्रत की रिहाई के बाद से चैन की साँस नहीं ले सकी है। पहले सीमा पर होते हमलों की वजह से और अब राज्य में हो रही राष्ट्रद्रोही गतिविधियों के चलते राज्य सरकार का गठबंधन खतरे में दिख रहा है। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी जिस भी देश के दौरे पर जाते हैं, वहाँ आतंकवाद का मुद्दा आम तौर पर उठाते रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ उनकी मुलाकात हो या उनकी हालिया पेरिस, जर्मनी और कनाडा की यात्रा; वह आतंकवाद को हमेशा अपने प्रमुख मुद्दों में जगह देते हैं। ऐसे में भाजपा सरकार गठबंधन में रह कर कश्मीर में इस तरह की गतिविधियाँ कत्तई बरदाश्त नहीं करेगी यह तो साफ है। यही वजह है कि इस घटना को गृह मंत्री राजनाथ सिंह समेत समस्त पूरे प्रशासन ने गंभीरता से लेते हुए इस पर त्वरित एंव कड़ी कार्यवाई करने का फैसला लिया।
राजनीतिक दृष्टिकोण के अलावा भी यदि इस बिंदु पर गौर करें तो अपने ही देश में किसी अन्य देश का झंडा लहराया जाना और उसके नारे लगाये जाना किसी भी लिहाज़ से सही नहीं ठहराया जा सकता। गिलानी के जम्मू लौटने पर एयरपोर्ट के बाहर का जो नज़ारा था उसे देख कर कोई भी कह सकता था कि यह भारत नहीं पाकिस्तान है। सैकड़ों लोगों की भीड़ जिसका नेतृत्व मसर्रत आलम द्वारा किया जा रहा था। हवा में नारे गूँज रहे थे…. “तेरा मेरा क्या अरमान-कश्मीर बनेगा पाकिस्तान”। हवा में पाकिस्तान के झण्डे लहराए जा रहे थे। इस सारी घटना के बाद जम्मू सरकार तुरंत हरकत में आई और मसर्रत आलम और अली शाह गिलानी को नज़रबंद कर दिया गया। जिस तरह से केन्द्र सरकार इस मसले में लगातार पीडीपी सरकार पर दबाव बनाए हुए है उससे ऐसा लगता है कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को लेकर भाजपा कोई भी ढिलाई बरतना नहीं चाहती है। भारत विविधताओं में एकता वाला देश है। यहाँ प्रत्येक व्यक्ति को जीने का समान अधिकार दिया गया है। भारत में प्रत्येक मुसलमान को न सिर्फ अल्पसंख्यक होने के नाते सरकारी तंत्र में कई जगह छूट मिलती है बल्कि उन्हें भारत में किसी तरह की अन्य नागरिक की ही तरह कोई तकलीफ न हो इसका भी भरसक खयाल रखा जाता है। ऐसे में इस तरह की घटनाएं न सिर्फ प्रशासन पर एक अतिरिक्त बोझ बढ़ाती हैं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की छंवि खराब करती हैं।

By: पुनीत पाराशर
Jagran Institute of Management and Mass Communication

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